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Showing posts from March, 2021

जिंदगी की रीत हार के बाद जीत।

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जिंदगी की रीत, हार के बाद जीत! --------------------------------- डॉ॰ मनोज कुमार ------------------------------- कमरे में हल्की-हल्की रोशनी फैली हुयी और मध्यम-मध्यम हवाएँ अल्का जी के सिर के आंचल को उङा रही थी। छज्जूबाग,पटना के मध्यमवर्गीय परिवार का यह घर कुछ मामलों में अलग सा दिख रहा।आस-पास के इलाके में बङे-बङे इमारतें थी। सामने पटना नगर निगम की ओर से लगाया हुआ एक प्याउं ।जो की आते जाते लोगों की प्यास इस दोपहरी में बुझा रहा था।मैं डाकबंगला की तरफ से आ रहा था।42 डिग्री के तापमान सहते हुए गला सूख सा रहा था। सामने जब अलका जी का नेम प्लेट देखा तो  थोङा सूकून सा मिला।मुझे इनके यहाँ ही आना था ।अभिनव इन्हीं का गोद लिया बेटा है। पिछले दिनों सिविल सेवा पास करनेवाले में मेरा दोस्त भी शामिल रहा है।56 वर्षीय अल्का जी का सफर इतना आसान न था। कारगील युद्ध में  अपने शहीद पति  की याद में पेंशन पर जीते हुए ।पटना के अखबारों से जुङी रही।आश्रय गृह में सेवाएं दी।बच्चों को पढाया।एक दिन पोलियोग्रस्त अभिनव 11साल की उम्र में इन्हें मिला।तब से अबतक इन्हीं की बदौलत ये कामयाबी मेरे दोस्त कॊ मिली थी।मानसिक स्वास्थ्य

अपने भीतर के लौ से करें पथ रौशन।

हवाओं का रूख बदला जा सकता! ..गर हौसले में एहसास हो खुद का। जब हो चारों ओर घोर अंधेरा! अपने भीतर के लौ से कर लो पथ रौशन। चलते हुए गर तू टूट के बिखर भी जा कभी! अपनी आंखों के सपने को शिकस्त मत होने देना। हर पल यहीं चिराग जोङेगी तुझे! आखिरी मंजिल तलक बेहिसाब अनवरत । ----डॉ॰ मनोज कुमार,सी.साइकोलॉजिस्ट ।

अंतर्राष्ट्रीय यक्ष्मा दिवस २०२१

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विश्व यक्ष्मा दिवस 2021 पर एक शपथ लें!हम सब मिलकर बीमारी को खत्म करें।टी.बी बीमारी से ग्रस्ति व्यक्ति की कमजोरी के लिए उचित व पौष्टिक आहार प्रदान करने में सहयोग करें।परिवार या आपके आसपास के किसी व्यक्ति को यह बीमारी हुयी हो तो उनका सम्मान कर उनके हौसले को बुलंद करें।नियमित दवा व मानसिक स्वास्थ्य को उत्तम रखने से टी.बी रोगियों में रोग प्रतिरोधी क्षमता बढती है।  इस रोग के हो जाने पर चिंता बढ जाती है।  रोगी अवसाद से भी पीड़ित हो सकता है। इसलिए हमसब को इस रोग से लङना है रोगियों से मानवीय व्यवहार व पूर्ण अपनत्व के साथ! -डॉ॰ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक, पटना।

मेरे सपने।

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लक्ष्य विहीन जिंदगी मृत शरीर समान! सपनों के उङान में भरें उम्मीदें, संवारे अपने कल,आज और कल को। -डॉ मनोज कुमार

सेल्फी की आदत बढाये असुरक्षित व्यवहार!-डॉ॰ मनोज कुमार

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हमारी शाख्सियत का पता  परिवार और समाज में दिये योगदान से होनी चाहिए।रंग-रूप ,सुडौल काया,आरी-तिरझी नयन-नक्शे कामयाबी में खलल नही डालते।हमारे भीतर बैठा हमारा स्वं ही हमें अलग-अलग बिंदुओं पर ले जाता है। कभी हम खुद को खराब तो कभी हमारे विचार खुद को ज्यादा महत्वपूर्ण समझने और दुसरों को कम समझने की दरख्वास्त करता है। ये हम ही है जो अपने आप को कभी ज्यादा तो कभी कम ट्यूनिंग करते रहते हैं। हमारे राग बदलते हुए दुसरे के सुर बिगाङते रहते हैं। इसका पता हमें नहीं चलता और हम खुद में खो जाते हैं। खोये-खोये रहते हुए हम आभासी दुनिया में कदम रखते हैं। सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों पर अपने सजीव पिक्चर्स अपलोड करना एक तरह से अनेकानेक मनोवैज्ञानिक समस्याओं से युवाओं को धर कराने लगा है। सेल्फी बहुत बार हमें खुशी तो कुछ मामले में खुद को कमत्तर आंकने का मौका देता है। सेल्फी जब समस्या बन जाती है तो इस तरह के लक्षण उभरते हैं। 1.खाने पीने से, पढाई से और खेलों से मन का उचट होना। 2.बेवजह खुशी या दुखी होना। 3.पारिवारिक सदस्यों या दोस्तों से खराब व्यवहार होना। 3.बैचेन रहना, चिड़चिड़ापन और जल्दी घबरा जाना।            

युवाओं में बढते तनाव और अवसाद को लेकर कार्यशाला आयोजित ।

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युवाओं में बढते तनाव व अवसाद प्रबंधन पर राष्ट्रीय बेबिनार आयोजित । ---------------------------------------- युवाओं व आमलोगों में बढते तनाव व इससे होनेवाले अवसाद जैसी समस्या के प्रति जागरूकता को लेकर पटना के मनोवैज्ञानिक डॉ॰ मनोज कुमार द्वारा तनाव प्रबंधन पर एकदिवसीय राष्ट्रीय बेबिनार का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में संपूर्ण बिहार-झारखंड के आलावा देश के नामी-गिरामी उच्च शैक्षणिक संस्थाओं में पढ रहे युवाओं व उनके अभिभावकों ने हिस्सा लिया।युवाओं द्वारा बढ-चढकर तनाव व इससे होनेवाले डिप्रेशन से बचाव के लिए प्रश्न पूछे गये।प्रोग्राम में राँची की रेकी एकस्पर्ट व काउंसलर ने तनाव और पास्ट पेनफुल मेमोरी से उबङने के लिए युवाओं को नयी तकनीकी जानकारी दी। इस अवसर पर डॉ॰ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक चिकित्सक द्वारा बताया गया की अभी संपूर्ण विश्व में तनाव व इससे उत्पन्न चिंता द्वारा लोगों में अवसाद जैसे लक्षण उभर रहें हैं। उन्होंने बताया कि ग्लोबल और्गेनाइजेशन फोर स्ट्रेश जैसी उच्चस्तरीय शोध संस्थान भी वैश्विक महामारी से बन रही परिस्थितियों से होनेवाले तनाव व इससे हो रहे बीमारियों पर अपने कान खङे कर लि

महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य पर एक पहल।

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सिसकते दास्तान को मिल रहा नया आयाम। ------------------------------------------------- सदियों से महिलाओं को एक वस्तु समझने वाली पुरूषवादी सोच ने अबतक महिलाओं की  एक कमजोर छवि प्रस्तुत की।हजारो सालों से चले आ रहे प्रथा,रीती-रीवाजों व संस्कृतियों के वहन का दायित्व इनके कंधे पर दे दिया गया था। बच्चों को पालने,पति के नखरे उठाने,शादी के बाद मिली नयी जिम्मेवारीयों का मामला हो या घर चलाने की बात हो ,नौकरी मे मिले जिम्मेदारी का अहसास व नैतिक मूल्यों का निर्वाह बदलते समय में इनके व्यक्तित्व को निखारने का काम कर रहा। बदल रही महिलाओं की मानसिकता । ------------------------- दरासल सैकड़ों सालो से महिलाओं के अचेतन में यह बात डाली गयी की उनकी निर्बलता व असहायता ही उनकी पहचान है। वो उस काम को कदापि नही कर सकती जिन कामो पर पुरूषों का अधिपत्य रहा है। इनके अचेतन में यह हमेशा कशमकश रहता रहा हैं की जिस समाज में महिलाओं की शिक्षा व उनके जन्म से जुड़े अनेकानेक भ्रातियां फैले हो।जहां बङे व्यापक रुप में व पूरे साज-सज्जा के साथ समाजिक-सांस्कूतिक अभ्यास करा-करा करके अनुभवों को  इनके दामन में जोङा जा च

डॉ॰ मनोज कुमार,मनोवैज्ञानिक ।

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[23/01, 12:32 am] Dr.Manoj Kumar, C.PSYCHOLOGIST,मानसिक समस्या विशेषज्ञ,समाज कल्याण वि.,बिहार: बदलता बचपन उलझते रिश्ते ! ---------------------------------- डॉ॰ मनोज कुमार ------------------------------------- बच्चे ईश्वर का एक वरदान है। ज्यादातर समय इनका घर व स्कूल में बितता है। परिवार के सदस्यों से इनका भावनात्मक जुङाव होता हैं वहीं वह विद्यालय में भी अपने जीवन का अहम हिस्सा गुजारते हैं। कुछ बाते घर की होती है। तो बच्चों के व्यवहार बङे-बुजुर्ग आसानी से समझ लेते हैं। कुछ मामले में जब आपका बच्चा बाहर में समायोजित नही होता तब उसके व्यवहार में व्यापक बदलाव देखने को मिलते हैं। साथियों का दबाव। -------------------------- आपका बच्चा स्कूल से  आकर सीधे औधें मुंह बिस्तर पर पसर जाता है। आपके सीधे सवालों के जवाब चिङचि़ङे होकर देता है। खाना की आदत आपके लिए परेशानी का सबब बन रही तो ऐसे में आपको सचेत होने की जरूरत है। आपका बच्चा किसी न किसी दबाव में है। एजुकेशनल समस्या कर रही हलकान। ----------------------------- अभी एक्जाम शुरू होनेवाले हैं और कुछ के  रिजल्ट आयें हैं और इसके  साथ ही साथ

उलझते किशोर बिगङते रिश्ते।

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वैश्विक बंदी के उपरांत किशोरों से अपेक्षाओं के बोझ कम करने की दरकार । ------------------------------ डॉ॰ मनोज कुमार ------------------------------------- उङते आसमानों में बाहे फैला कर जीने की बातें करना।मीठे सपनॊं के आगोश में समाये रहना।पल भर में दुनिया को मुट्ठी में करने की बातें युवाओं के मुख से सुनना।हर किसी को अपने बालपन के अङियलपन व किशोरावस्था की दहलीज की यादें दिलाता है।ये सब इस वैश्विक महामारी से पहले समान्य माना जाता रहा है। महामारी से बन रही परिस्थितियाँ किशोरों के अख्खङपन को कम कर रहा है। जज्बात से भरे  किशोरों द्वारा अब अपने उम्र से ज्यादा कशमकश वर्तमान महौल में देखा-सुना जा रहा। कोरोना से उपजे सार्वभौमिक हालात  14 साल की उम्र में ही किशोरों के उन विचारों को परिपक्व करा दिया है जहाँ वह अपने भविष्य के सपने बुनने के लिए जाने जाते रहे हैं। जैसे-जैसे सूबे में महामारी से निपटने और वैक्सीन के माध्यम से इंफेक्शन को रोकने की तैयारी हो रही है वैसे ही किशोरों के  व्यवहार में तलखी देखी जा रही।पाढ्यक्रम को आधा करने और सहपाठियों से अधिक समय तक दूर रहने से उनमें अनेकों प्रकार के विषाद पन

एक दस का नोट!

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एक दस का नोट! ----------------------- मोहब्बत की तलाश में ! जेब भारी कर घुमा करता एक आशिक । दिन-दोपहरी प्यार के खोज में! मारा-मारा फिरता एक परवाना। एक दिन उसे मिल ही गयी, वो सपनों की शहजादी। जेब में रख एक सौ का नोट! दुनिया से बेपरवाह स्वतंत्र सा वह। तब उस समय नब्बे का पेट्रोल भरा, मेहबूबा को सैर कराता तना हुआ सा वह दिल का रोगी। घूमते-घूमते थक हार प्रियतमा को जलपान की अलख लगी! पाकिट से एक दस का नोट निकाल। पानी-पुङी खाकर अपनी प्रेयसी के संग वह आशिक घर लौट गये। प्रेम में बहुत पैसे की जरूरत नहीं! बस है जरूरी एक दस का नोट। --(डॉ॰ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक, पटना द्वारा रचित।)