जिंदगी की रीत हार के बाद जीत।
जिंदगी की रीत, हार के बाद जीत! --------------------------------- डॉ॰ मनोज कुमार ------------------------------- कमरे में हल्की-हल्की रोशनी फैली हुयी और मध्यम-मध्यम हवाएँ अल्का जी के सिर के आंचल को उङा रही थी। छज्जूबाग,पटना के मध्यमवर्गीय परिवार का यह घर कुछ मामलों में अलग सा दिख रहा।आस-पास के इलाके में बङे-बङे इमारतें थी। सामने पटना नगर निगम की ओर से लगाया हुआ एक प्याउं ।जो की आते जाते लोगों की प्यास इस दोपहरी में बुझा रहा था।मैं डाकबंगला की तरफ से आ रहा था।42 डिग्री के तापमान सहते हुए गला सूख सा रहा था। सामने जब अलका जी का नेम प्लेट देखा तो थोङा सूकून सा मिला।मुझे इनके यहाँ ही आना था ।अभिनव इन्हीं का गोद लिया बेटा है। पिछले दिनों सिविल सेवा पास करनेवाले में मेरा दोस्त भी शामिल रहा है।56 वर्षीय अल्का जी का सफर इतना आसान न था। कारगील युद्ध में अपने शहीद पति की याद में पेंशन पर जीते हुए ।पटना के अखबारों से जुङी रही।आश्रय गृह में सेवाएं दी।बच्चों को पढाया।एक दिन पोलियोग्रस्त अभिनव 11साल की उम्र में इन्हें मिला।तब से अबतक इन्हीं की बदौलत ये कामयाबी मेरे दोस्त कॊ मिली थी।मानसिक स्वास्थ्य