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देवतुल्य पिताजी के अमर आत्मा के प्रकाश पुंज से प्रज्वलित मेरा उदीयमान मन।-डा.मनोज कुमार

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"न जायते म्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोअ्यं पुराणों न हन्यते हन्यमाने शरीर ।।" हे पिता आप ईश्वर के रुप में साक्षात् मेरे जीवन को तराशते रहें।कर्म के लिए तैयार भी किया।आपकी आत्मा को श्रीहरि विष्णु अपने चरणों में स्थान दें।भगवान रूपी ऊर्जा से परिपूर्ण आपने हमेशा मेरे चित्त को संवारा। जीवन को समझने और लोगों की मदद के लिए योग्य बनाया।आपकी आत्मा को पहचानने में भूल हुयी हो तो क्षमा किया जायेगा।आपकी आत्मा किसी काल में न जन्मी है और नाहिं आपकी आत्मा की मृत्यु हुयी है। वह तो अजन्मा ,नित्य ,शाश्वत तथा पुरातन है। आपका शरीर भले ही इस नश्वर संसार में नही है। आपकी भौतिक आवाज को आज भले नही सुन रहा परंतु आपकी कृति विद्यमान है। आपकी सीख सदैव मेरे साथ है। आपके शरीर ने जन्म लिया इसलिए आपने शरीर का त्याग किया। आपकी आत्मा इतने वर्षों तक जिस शरीर में निवास कर रही थी। उस शरीर से उत्पन्न भौतिक शरीर में मेरे प्राण हैं। सच में मेरी आत्मा आपकी अनुपस्थिति में पूर्व में आपके द्वारा बटोरो स्नेह और अनुभव को महसूस कर सकता है।पूजनीय  पिताजी आप ज्ञान और चेतना से सदैव पूर्ण