सोशल मीडिया दे रहा महिलाओं को अचेतन के दुःख से उबङने का सुर।
महिलाओं में अचेतन की छटपटाहट के प्रति सोशल मीडिया ने दिये विरोध के सुर। ------------------------------------- डॉ॰ मनोज कुमार ------------------------------------- हमारे संविधान में महिला-पुरूष की समानता की वकालत की गयी है। लेकिन समाज में हर मामले में महिलाओं को वो अधिकार नही मिलें हैं जिनकी दरकार बदलते दौर में देखा जा रही। महिलाओं को अबतक किसी समान की तरह ही समझा गया। समाज में महिलाओं की एक कमजोर छवि प्रस्तुत की गयी। इसके बावजूद वह रीती-रीवाजों व संस्कृतियों के दायित्व का वहन करती रही हैं। अब बच्चों के लालन-पालन की बात करें या पति के नखरे उठाने की दोनों ही जगह अपने जिम्मेदार होने के सबूत भी उन्होंने दिए।आप देंखें तो शादी के बाद मिली नयी जिम्मेवारीयों का मामला हो या घर चलाने की बात हो ,नौकरी में मिले जिम्मेदारी का अहसास व नैतिक मूल्यों का निर्वाह बदलते समय में इनके व्यक्तित्व को निखारने का काम भी कर रहा। हर वर्ग की महिलाएं बदल रही अपनी मानसिकता । ------------------------- दरअसल सैकड़ों सालो से महिलाओं के अचेतन में यह बात डाली गयी की उनकी निर्बलता व असहायता ही उनकी पह