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Showing posts from June, 2021

सोशल मीडिया दे रहा महिलाओं को अचेतन के दुःख से उबङने का सुर।

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महिलाओं में अचेतन की छटपटाहट के प्रति सोशल मीडिया ने दिये विरोध के सुर। ------------------------------------- डॉ॰ मनोज कुमार ------------------------------------- हमारे संविधान में  महिला-पुरूष की समानता की वकालत की गयी है। लेकिन समाज में हर मामले में महिलाओं को वो अधिकार नही मिलें हैं जिनकी दरकार बदलते दौर में देखा जा रही।  महिलाओं को अबतक किसी समान की तरह ही समझा गया। समाज में महिलाओं की  एक कमजोर छवि प्रस्तुत की गयी। इसके बावजूद वह  रीती-रीवाजों व संस्कृतियों के दायित्व का वहन करती रही हैं। अब बच्चों के लालन-पालन की बात करें या पति के नखरे उठाने की दोनों ही जगह अपने जिम्मेदार होने के सबूत भी उन्होंने दिए।आप देंखें तो  शादी के बाद मिली नयी जिम्मेवारीयों का मामला हो या घर चलाने की बात हो ,नौकरी में मिले जिम्मेदारी का अहसास व नैतिक मूल्यों का निर्वाह बदलते समय में इनके व्यक्तित्व को निखारने का काम भी  कर रहा। हर वर्ग की  महिलाएं बदल रही अपनी  मानसिकता । ------------------------- दरअसल सैकड़ों सालो से महिलाओं के अचेतन में यह बात डाली गयी की उनकी निर्बलता व असहायता ही उनकी पह

मेरे बस में नहीं मेरा बेकाबू मन। _डॉ॰ मनोज कुमार

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मेरे बस में नहीं बेकाबू मन। ------------------------------------- डॉ॰ मनोज कुमार  --------------------- वह अभी कॉलेज का पहला लेक्चर  मैम  से सुना।काफी प्रभावित हुआ।कुछ दिन तक आवाज उसके कानों में गूंजती रही।एक दिन उसने पाया वह अपने टीचर के बारे में ठीक नहीं सोच रहा।बहुत सोचा,विचार किया फिर भी उसके मन से वह बात नही जा रही थी,अब वह खुद को द्वोषी मानने लगा।लोगों से कटकर जीने लगा।घुटन इतनी की पढाई पर भी ध्यान नही हो पा रहा।लाख जतन किया लेकिन अपने विचारों पर से नियंत्रण पा न सका।आयुषि गृहणी हैं। उम्र कोई तेतीस साल।उनके मन में सफाई का भूत सवार है।घर व दूसरे समान हमेशा चकाचक।सफाई के पीछे उनका इतना समर्पण है कि वह अपने पति व बच्चे का ख्याल नही रखती।अपने खफा हो रहे लेकिन उनको इसकी परवाह नहीं। सुकेश 38 साल के हैं। ।जब भी टीवी या अखबार में कुछ अप्रिय देखते -सुनते हैं उनमें अपने पुत्र के बारे में दुखद सोच आना शुरु हो जाता है।हर पल प्रियजनों की मृत्यु या अप्रिय अशुभ सोच उनकी दिनचर्या को चौपट कर रही।कभी नींद का उचटना तो कभी भूख की दूरी।सुख मानो कोसो दूर।चैन की बूंद भी नही।हर पल की कुछ न ह

जानें डिप्रेशन के बारें में डॉ॰ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक चिकित्सक के साथ ।

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मेरे जीवन में डिप्रेशन की शुरुआत 2019 में हुआ जब बिहार पुलिस में लिखित परीक्षा पास करने के बाद भी अंतिम रूप से चयनित नही हुआ ।बहुत बार इस तरह की कामयाबी मिलते-मिलते रह गयी थी। फंस्ट्रेशन में आकर मैंने लोगों से मिलना जुलना छोङ दिया।खाना-पीना भी अनियमित हो गया।करीब छ: मास तक उदास ही रहा।मरने का ख्याल आता रहा था।फिर मुझे मेरी बूढी दादी का ख्याल भी रहता।मुझे लगता की मेरे बाद इस लाचार का कौन होगा।तब एक बार मैने निश्चय किया की मुझे नौकरी नही मिली तो आगे व्यर्थ समय न गंवा।घर के आगे ही घङी रिपेयरिंग का काम शुरू कर दिया।इस काम में अनेकों लोगों से मुलाकात हुयी।खट्ठी-मीठ्ठी यादों के साथ उस दौर के बाद अब बहुत बदलाव महसूस करता हूँ ।जो है उसी में विश्वास के साथ अपना और दादी के साथ खुश होकर जी रहा।दिसंबर में मेरी शादी है। ये कहना है 26 वर्षीय आर्यन गुप्ता(परिवर्तित नाम) का जो नाला रोड ,पटना में रहते हैं। कुछ इसी तरह का मामला निवेदिता आनंद (परिवर्तित नाम)का भी है।वह रामजीचक दीघा,पटना की निवासी हैं। उन्होंने बताया कि उ‌नका ब्रेक- अप दो साल पहले हुआ।तब से बहुत रिश्ते शादी को आये।वह बङे गंभीर अंदाज में म

जानें ओ.सी.पी.डी मानसिक विकार के बारे में ।

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मि.परफेक्टनिस धौंस की आङ में बीमारी तो नहीं । -------------------------------------- तेतालिस वर्षीय अशोक (परिवर्तित नाम)एक निजी कंपनी में तैनात हैं। बिहार में लौकडाउन के बाद अब यहाँ सभी सरकारी और प्राइवेट दफ्तरों को खोल दिया गया है। वर्क फ्रौम होम के बाद कर्मचारियों को अपने आप को ज्यादा से ज्यादा उपयोगी साबित करना है। अशोक अपने ऑफिस में सजग होकर काम करते रहे हैं। उनके बौस को उनका काम तो पसंद है पर वहाँ काम करने वाले अन्य स्टाफ एक दहशत महसूस कर काम करते हैं। अनलौक के बाद से उनके ऑफिस का नजारा बदला-बदला सा रह रहा है। हर दिन कंपनी के सीनीयर अपने आदेश को उसी दिन पूरा करना चाह रहें।बौस हर कार्य को सलीके से करवाना चाहते है। हर दिन नये  तरीके से काम को अंजाम देना अशोक करते रहें हैं पर बीच-बीच में बौस द्वारा थोड़ी सी भी गलती को लेकर उनका लंबा प्रवचन किसी को रास नही आता।अनेक बार अशोक के मन में नौकरी छोड़ दुसरी जगह ज्वाइन करने की बात आती रही है ।वह हमेशा बौस के रवैये में बदलाव आने की उम्मीद से वहाँ टिके हुए हैं। वैश्विक महामारी के पहले कितने लोग कार्यालय और बौस दोनों को छोङ चुके हैं। बौस को अपने

विश्व तंबाकू निषेध दिवस 2021 पर विशेष कवर स्टोरी ।

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(31/5/2021)_विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर विशेष । तंबाकू छोङने में परिवार की भूमिका अहम। ---------------------------------  वैश्विक महामारी के इस दौर में कमजोर फेफड़े ने अनेकों जिंदगीयों को लील लिया है। ज्यादातर मामले में तंबाकू और इससे जुड़े उत्पाद हमारे रोजमर्रा के जीवन में शामिल हो रहे हैं।  लोग तंबाकू और इसके दुष्प्रभाव को  जानते तो हैं परंतु तंबाकू उत्पादों का सेवन उनकी मजबूरी हो सकती है। कुछ लोगों को खैनी व चाय की तलब होती है। वह इसके बिना अपनी दिनचर्या शुरू नही कर पाते हैं। वहीं कुछ युवाओं के बीच सिगरेट और कोल्ड ड्रिक्स को एक साथ लेते हुए देखा जा सकता है।इनके लिए सिगरेट के कश लगाना स्टेटस सिंबल माना जाता रहा है।ये ऐसे पदार्थ हैं जो तंबाकू उत्पादों से संबंधित निकोटिन होते है।इनके सेवन से फेफड़े में टार जमा होता है। इनका प्रभाव शरीर के साथ मन पर भी व्यापक असर के रुप में होता है। तंबाकू और निकोटीन से संबंधित नशा बच्चों और युवाओं के बीच लोकप्रियता के चरम पर है। युवाओं में यह भ्रांति धर कर बैठ जाती  है की उनके आलावा दुनिया में हर किसी शख्स को किसी न किसी चीज का नशा है।उनकी मानसिकता यह भ