रक्त का कतरा-कतरा जुटे।

रक्त का  कतरा-कतरा जुटे जाये!
शालीनता भरे इस इमारत में ।
 मेहनत से उपजे
पसीने की खूश्बू भी शरीक होकर,
धूल- मिट्टी की चादर लपेट ले!
धूप-छांव की परवाह किये बगैर
मेरे राहों में बिछे कांटे भी
उमंग व हौसले के उङान से
वाह!लग रहें कितने प्यारे।
यह प्यास हैं कामयाबी की
जीत के उमंग के आगे 
रास्ते की कठिनाइयाँ भी 
पहाङों में मीठे जल-स्रोत सरीखे।
-डॉ॰ मनोज कुमार

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