मेरे बस में नहीं बेकाबू मन।

मेरे बस में नहीं बेकाबू मन।
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डा.मनोज कुमार
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वह अभी कालेज का पहला लेक्चर  मैम  से सुना।काफी प्रभावित हुअा।कुछ दिन तक आवाज उसके कानों मे गूंजती रही।एक दिन उसने पाया वह अपने टीचर के बारे मे ठीक नहीं सोच रहा।बहुत सोचा,विचार किया फिर भी उसके मन से वह बात नही जा रही थी,अब वह खुद को द्वोषी मानने लगा।लोगों से कटकर जीने लगा।घुटन इतनी की पढाई पर भी ध्यान नही हो पा रहा।लाख जतन किया लेकिन अपने विचारों पर से नियंत्रण पा न सका।आयुषि गूहणी है। उम्र कोई तेतीस साल।उनके मन मे सफाई का भूत सवार है।घर व दूसरे समान हमेशा चकाचक।सफाई के पीछे उनका इतना समर्पण है कि वह अपने पति व बच्चे का ख्याल नही रखती।अपने खफा हो रहे लेकिन उनको इसकी परवाह नहीं। सुकेश 38 साल के है ।जब भी टीवी या अखबार मे कुछ अप्रिय देखते सुनते है उनको अपने पुत्र के बारे मे दुखद सोचना शुरु कर देते है।हर पल पि्यजनो की मूत्यु या अशुभ सोच उनकी दिनचर्या चौपट कर रही।कभी नींद का उचटना तो कभी भूख की दुरी।सुख मानो कोसो दूर।चैन की बूंद भी नही।हर पल की कुछ न हो जाये मेरे परिवार को।
चिंता के बादलों का घनघोर होना।
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दरअस्ल जब इंसान किसी समस्या के बारे मे चिंतन करता है तब वह समाधान पा लेता है।यह तब होता है जब हमारे मन पर खुद का नियंत्रण हो।किसी विषय पर बार बार सोच अपनी इच्छा से उसपर नियंत्रण कर लें तो निश्चित सफलता मिलती है।समाधान भी कदमों मे होते है।लेकिन किसी कारण से हम उनपर से नियंत्रण खो देते हैं तब वह मनोविकार का रूप ले लेता है और तबाह करने लगता है व्यक्तिगत, पारिवारिक -समाजिक, राजनैतिक व प्रोफेशनल जीवन को।
यह ऐसी दशा है जहां इंसान गुलाम बन जाता है अपने ही विचारों की दुनिया में ।
शिकारग्रस्त विचार! 
---------------------------------------यह एक प्रकार कि विचार है।जिसॆ आप निरर्थक मानेंगे लेकिन बिन बुलाये मेहमान की तरह आता रहेगा आपके पास।आपके लिए यह विचार महत्वहीन होगा ।आपको यह मालूम है फिर भी आप अपने साम्रथ्य से पार न पा सक रहे।आप को हरदम लगेगा आप अपने अंदर एक विचार आने से परेशान है।
पटना और राज्य के कोनों कोनों से मेरे पास आ रहें मरीजों मे मैने पाया।इस तरह के विचारों से आप धीरे-धीरे अपना कंट्रोल खोते है।आक्ामक रूख,गंदगी या दूसरी चीज पर अाप अपना अखि्तयार नही रख पाते।कोई भी बात अापके दिमाग मे एक बार नहि बार बार, दस हजार बार भी आते है और आप उससे पिंड नही छुङा पाते ।

अनेकानेक दूश्य सामना
---------------------------------------कई बार आप एक ही सीन बार बार देखते है।आप चाहेंगे की वह घटना या वाक्या बार बार न आये।फिर भी वह दुश्मन की तरह पीछा नही छॊङती।कुछ समय अपनों के बारे मे गंदे ख्यालात आयेगें।कभी नजदीक के रिश्तेदार के बारे मे उनके मरने या दुर्घटनाओं से मन चित्रित रहेगा।चाह कर भी ये दूश्य आपके आंखो के सामने तैरते रहेंगे ।बहुत बार आप अपने परिवार, रिश्तेदार, गुरुजनों के बारे में भोग की नजरों से देखेगे,सहसा आपके मन मे ख्याल आयेगा यह मेरे अपने है ।आप दुखी हो जायेंगे लेकिन बार बार यही चीज आपके मन मे आयेगा।पश्चताप की अग्नि मे जलते रहेगे, सबसे छुपायेगे इस दर्द को लेकिन जख्म हमेशा हरा रहेगा ।

आवेग की आंधी।
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कुछ लोगो को बार बार एक ही काम करने की आदत होती है।कुछ चुने,गिनने, सजाने की एक सनक सी होती है।अगर अाप उनको रोकेगे तो वह आपसे लङ भी लेगें ।
आज से बहुत साल पहले जब मैं पीएमसीएच पटना मे एक मरीज देख रहा था।तो वह अपार्टमेंट के तीसरी मंजिल पर वह महिला रहती थी,हाथ पांव पानी लगने से बजबज कर रहा था,उनको लगता था कि नीचे जो बच्चे कचङा बुनते है और ठीक उनके सामने नीचे नगर निगम के नल पर हाथ पांव धुलते है उनका छींटा उनके तीन मंजिल फ्लैट पङ जाते होगें।इसलिए सम्भावित वह पूरे घर को धो देती थी।ऐसा दिन मे कई बार भी होता था

कहते है चिंता मू्त्यु शैय्या समान है। कबतक आप अपने आत्मबल का नुकसान करेंगे ।आइये हम बात करें ।आपकी सभी समस्याओं का समाधान उपलब्ध है।
लेखक डा. मनोज कुमार, काउंसलिंग एंड साइको-थेरेपी के माध्यम से उपचार करते हैं। --contact  9835498113

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