पत्तलचटवा

पत्तलचटवा।
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महेश्वर बाबू की साइकिल आज पंचर हो गयी थी। इसलिए आज वह सबलपुर पैदल ही कटाव का निरीक्षण करने आ गये थे। सामने से आ रहे एक नाबालिग ट्रैक्टर चालक ने उनकी धोती उङा दी।कीचङ से सने अपने कमीज की ओर देखा।54 वर्ष की उम्र में गाली देना अशोभनीय होता है। इसलिए पुरे ताकत से दांत पीसते हुए आगे निकल गये।वह मन ही मन सोच रहे थे की सोनपुर को अनुमंडल बने दो दशक से अधिक हो गये।हालात में क्या सुधार हुआ इसका जायजा लेने के लिए ही वह सोनपुर आमद से दक्षिण के गाँव भ्रमण को निकले थे। बङे-बङे पोस्टर में भावी मुखिया, सरपंच और पंचायत समिति के उम्मीदवार हाथ जोङे खङे है। बिना हेल्मेट के कुछ झंडा लिए नि-मुछिया लङके तेजी से जिंदाबाद के नारे लगाते हुए निकले जा रहें हैं। "प्रणाम ऐ महेश चा वोट देवे अलहू..ह !चापहू के भी व्यवस्था हव!प्रत्याशी के बैनर से मुंह ढके एक लङके ने आग्रह किया था। महेश्वर बाबू जैसे ही आवाज की दिशा में देखने की कोशिश कर पाये तबतक गाँव के ही बुझावन नाम के एक लङके का गुटका पचाक से उनके दाहिने कंधे पर पङ चुका था। महेश्वर बाबू स्वभाव से शांत प्रवृति के रहे हैं। अब धीरे-धीरे वह उबल रहें थे।" अहो महेश चा ढहती देखे अलहू ह की चांपे"सभी लङके इतना बोलते हुए जयकारे लगाते निकल गये। सबलपुर, सोनपुर में चार पंचायत है। मध्यवर्ती पंचायत में एरिया बङा है।वह जल्दी-जल्दी इस क्षेत्र का दौरा समाप्त करने लगे थे। यहाँ उनको एक ऐसा जनप्रतिनिधि मिला जो कभी अपने शिक्षक को भी उनकी तनख्वाह से अपने गुटखे के खर्च को माप चुका है। उनको यह सूकून है की वह अब समाज सेवा कर रहा।आगे बढने पर इसी पंचायत में यहाँ एक स्वतंत्रता सेनानी हुए थे उनकी प्रतिमा पर हाजीपुर से खरीदे फूल महेश्वर बाबू ने अर्पित कर दिए।इस पंचायत के बगल में उत्तरी पंचायत है। यहाँ भी दल-बल के साथ लोग है। पुरे गाँव के हलवाई जो कभी बाजारों में ठेले लगाते थे वह गायब है। महेश्वर बाबू गंदे हो चुके कपङे में ही पूर्वी पंचायत में पहुँच चुके हैं। यहाँ तो रोड पर ही नाली बह रहा है। यह भी एक डेवलपमेंट ही होगा। आज महेश्वर बाबू बिना नाश्ता किए घर से निकले हैं। सोचा था की कचहरी बाजार पर जाकर सोनपुरिया हलवाई के यहाँ की जलेबी और पुरी तोङेगें पर वह सब भी बंद था।तीन पंचायत घूमते हुए वह थक गये ।पुरे गाँव में हालांकि जश्न का माहौल जैसा है। कानफूङने वाला तेज आवाज में प्रचार-प्रसार।सभी जीतने को आतुर।कचहरी बाजार पर दिवंगत मुखिया व पूर्व प्रखंड प्रमुख की आदमकद प्रतिमा पर महेश्वर बाबू ने श्रद्धा सुमन अर्पित किए।स्वर्ग में आसिन इस पुण्यात्मा से सबलपुर के उत्थान के लिए प्रार्थना भी की।अब वह सबलपुर पश्चिमी के लिए प्रस्थान कर चुके थे। अबतक वह अपने दौरे में जलेबी,पुरी,आलूदम व अन्य तरह के व्यजंनो की भीनी-भीनी खूश्बू से मन को संभाले हुए थे।
सुबह से भूख के मारे उनके पांव जम गये थे। मन में यह बेचैनी की पश्चिमी पंचायत का कटाव देखा जाये।वह चाहते है की कटाव से उत्पन्न विस्थापन के दर्द को समझा जाये‌।उनकी जो जमा पूंजी है उससे वह वहाँ के लिए कुछ कर सके ।इसी मनोभाव से वह इस अंतिम पंचायत की ओर बढ रहे थे। भौगोलिक रूप से यह पंचायत पहले की अपेक्षा काफी सिमट चुका है। बाढ और कटाव से त्रस्त इस पंचायत में राजनीतिक भूख रखने वालों से गुलजार दिख रहा।जगह-जगह सामुदायिक रूप से भोज चल रहा है। कहीं प्रत्याशी अपने घर पर खाने-पीने की व्यवस्था कर चुके हैं। कही हरे-पत्ते देकर नाश्ते मंगवाए जा रहे।कही बोलेरे जीप से आदमी ढोए जा रहें हैं ।पुरी,कचौङी,जलेबी ,बूंदिया,आलू-परवल तो  कभी मटन,चिकन और मछली फ्राई होते देख महेश्वर बाबू खुद को लपलपाते मुंह में पानी को अंदर खींच संतोष से आगे बढे चले जा रहें हैं ।"का हो महेश्वर दा आज अलहू ह !चलबहूं का नोमिनेशनवा में ।एक अधेङ किस्म को परिपक्व व्यक्ति ने खैनी मलते हुए महेश्वर जी से पूछा था। अच्छा ये सब बताओ आप लोग प्रत्याशी लोग इतना भोज-भात क्यो कर रहा।क्या यहाँ इतनी गरीबी है। महेश्वर बाबू ने कौतूहूल वस पूछ लिया था।"अरे तू त एकदमें पढ-लिख के बौरा गेल हव !ने हव देख इत की इ सब इलेक्शन जीते ला होइत ह...इ!अंखवा में हव कुछ धां...!इस बार पंचायत चुनाव में सबलपुर पश्चिमी पंचायत में जमीन हङपने वाला,सूदखोर,चोर,रंगबाज ,सरकारी रेवेन्यू हङपने वाला,पेट्रोल-डीजल चोर और गरीब आइसक्रीम ठेलावाला से फ्री में आइसक्रीम खाने वाला सब यहाँ की भोली-भाली जनता को महीने तक भोज खिला रहा है। यह सब जानकर महेश्वर बाबू हतप्रभ हैं वह अचंभित भी है की दो रूपये ब्याज के लिए किसी की बहु-बेटी को नंगा देखने की चाह रखने वाला चूङा-गुङ बांट लोगों का मसीहा बन बैठा है। महेश्वर बाबू को इस बात का दुःख है की जिस गाँव में कभी पुलिस नही आयी।कभी न्याय के लिए लोग अदालत का चक्कर नही काटे आज वहाँ जहरीली शराब के लिए पुलिस रेड कर रही।जाति और ऊंच-नीच का भेद कराकर उन्माद फैलाने वाले आज जनता के रहनुमा बन रहे।सैकङो पत्तल खिलाकर लोगों के दिलों में मोहब्बत फैला रहे ये प्रत्याशी सैकड़ों कानून तोङकर लोगों को पंचायत राज का पाठ पढा रहे।गांव के वह युवा जो आज सोशल मीडिया मैनेज कर रहा वह इन प्रत्याशी के बारे में नही जानता।क्या वह भी पांच सौ रूपये के लिए अपने जमीर को बेच चुका है। महेश्वर बाबू यह सब सोच मन ही मन यह कहते हुए  जा रहें हैं ।समाज को खोखला करने वाले प्रत्याशीयों का साथ कोई पत्तलचटवा ही दे सकता है। वह नही ।आज भी वह अपनी साइकिल से चलकर गर्व महसूस कर रहें ।लोगों को सत्य की राह पर चलने और अन्याय से लङने की प्रेरणा देते रहेगें।ऐसा सोच वह सोनपुर रेलवे जंक्शन की ओर बढ चले।
-(लेखक डॉ॰ मनोज कुमार, महेश्वर बाबू के चरित्र से प्रभावित हैं।)

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