पटना के सरकारी विधालयों में पढने वाले बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में वैश्विक महामारी (कोविड-19) प्रभाव का आनुभविक मनोवैज्ञानिक शोध अध्ययन ।(An empirical study of Covid-19 impact on patna based government school going children's mental health issues)Dr Manoj KumarC.psychologistPhD,PGDCR,PGCTW,(new Delhi)
पटना के सरकारी विधालयों में पढने वाले बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में वैश्विक महामारी (कोविड-19) प्रभाव का आनुभविक मनोवैज्ञानिक शोध अध्ययन ।(An empirical study of Covid-19 impact on patna based government school going children's mental health issues)
Introduction of the study
अध्ययन का संक्षिप्त परिचय ।
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-किसी भी देश की यह जिम्मेवारी होती है की वह अपने नागरिकों का सर्वांगीण ख्याल रखें।
-शिक्षा एक संवैधानिक अधिकार है और देश का हर राज्य इसे लागू करता है।
-पटना,बिहार की राजधानी में शिक्षा विभाग बिहार सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त अनेकानेक विधालय है।
-यहाँ सभी वर्ग के बच्चे पढते हैं।
-मगर विगत वर्ष से कोरोना महामारी ने अपने पांव पसारे जिससे सरकारी स्कूलों में पढने वाले बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य बुरी तरफ प्रभावित होने लगे।
-वैश्विक महामारी (कोविड-19)का आगमन नवंबर 2019 से हुआ।
-हम सभी जानते हैं की यह एक दुसरे के संपर्क में आने से यह बीमारी होती है। इस संक्रामक रोग का जाल दुनिया के दुसरे देशों में फैलता गया है।
-हिन्दुस्तान में यह बीमारी काफी त्राहिमाम मचा चुका है। इसका असर बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक रहा है।
-कोविड-19 का प्रभाव इतना रहा है कि इससे जान-माल का काफी नुकसान हुआ ।इससे बचने के लिए सुरक्षात्मक नजरिए से संपूर्ण दुनिया में लौकडाउन कङी पाबंदियों के साथ लगाये गये हैं।
-इंडिया में अबतक अनेक पाबंदी लगी हुयी है तो पिछले दिनों संपूर्ण बंदी का सामना भी लोगों ने किया।
-आज भी बिहार में सभी तरह के व्यवसायिक प्रतिष्ठान व अन्य तरह के संस्थान या बंद हैं या अल्टरनेट चल रहें।
-बिहार में पुरी तरह से शिक्षण-संस्थानों को खोला नही जा सका है।
- सरकारी विधालयों में पढने वाले बच्चों विशेषकर 10 वर्ष से 16 साल तक के बच्चे 2020 से ही पुरी तरह अपने-अपने घरों में कैद हैं।
-ऐसे बच्चों के लिए दूरदर्शन बिहार द्वारा अलग-अलग कक्षा के लिए प्रति दिन कक्षाएं आयोजित हो रही है।
-बिहार सरकार ,शिक्षा विभाग के गाइंडलाइन के मुताबिक सभी सरकारी विधालय में पढने वाले किशोर-किशोरीयों को शिक्षा के साथ खेलकूद व समाजिक सहपाठीयों के संग उन्मुक्त अंतक्रिया करना है ताकि उनका व्यकित्तव विकास सर्वांगीण रूप से मजबूत हो ,परंतु मौजूदा दौर में यह सब उनका बिल्कुल नही हो पा रहा है।
-सरकारी विधालय में पढ रहे बच्चों का आत्मसंयम थोङा कम होता दिख रहा है। इन सबका असर उनके व्यवहार पर हम देख सकते हैं।
-बच्चों में नयी-नयी जानकारी को सीखने की जिज्ञासा घट रही है।
-उनमें इमोशनल स्थिरता तथा अलग-अलग चीजें को ग्रहण करने की ललक भी इस दरम्यान कम हुआ है।
-मनोविज्ञान के हिसाब से व्यकित्तव विकास के लिए समाजिक अंतःक्रिया होना जरूरीहै परंतु इस तरफ घरों में सिमटे बच्चे का मेंटल हेल्थ भी प्रभावित हुआ है।
-बिहार में कार्यरत यूनिसेफ-2019 ने पहले ही बताया है कि दुनिया की जनसंख्या के हिसाब से 2.2अरब बच्चों की संख्या विश्व में होने की बात कही है।
-अगर उम्र के हिसाब से अनुमानित संख्या की बात करें तो 10 वर्ष से 19 साल के किशोरों का प्रतिशत पुरे विश्व की आबादी का 16% होगा।
-शेन और इनके साथियों 2020(जनवरी) का मानना है की कोविड-19 के डर से बच्चे को होम आइसोलेट या अलग रखा गया है। जिससे काफी प्रभाव पङे हैं।
-काफी बच्चों को टेलिविज़न और इंटरनेट द्वारा ऑनलाइन पढ़ाई करना पङ रहा है। जिसका असर भी उनके मानसिक स्वास्थ्य पर हो रहा है।
-चूंकि बिहार के सरकारी विद्यालय में पढने वाले बच्चों को दूरदर्शन में मेरा विधालय मेरा दूरदर्शन जैसे प्रोग्राम हो रहे तो कभी-कभी उनका ध्यान भटकता भी है।
- जबकि एक अध्ययन के मुताबिक समान्य ध्यान के लिए (normal attention span)के लिए ऑनलाइन क्लास 20-30 मिनट का रहना चाहिए।
-स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय कार्यालय द्वारा बीबीसी को बताया गया है की 40 मिनट के क्लास के बाद बच्चों का ध्यान भटकता है।
-इसलिए बच्चों को हर 40 मिनट के अंतराल पर प्रसारित कार्यक्रम/ ऑनलाइन कक्षाऒं के बाद आराम मिलना चाहिए।
- दूरदर्शन पर पढ रहे बच्चे या ऑनलाइन क्लास कर रहे बच्चे एक ही जगह बैठे रह रहे।
-शारीरिक क्रियाकलापों से दूर होने से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पङ रहा।
- बच्चे अपने-अपने घरों में शारीरिक क्रियाकलाप से दूर होकर बच्चों द्वारा मोबाइल, टेबलेट और टीवी के आलावा खतरनाक गेम्स के आदत भी लग रहे है।
-बच्चों में नींद की कमी ,चिङचिङापन और ध्यान को एकाग्रचित करने में कठिनाई देखी जा रही है।
Rationale of the study
अध्ययन की तर्कसंगतता।
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-प्रस्तुत अध्ययन पटना के सरकारी स्कूलों में पढने वाले स्कूली बच्चों के उनके मानसिक स्वास्थ्य में आ रहे बदलाव के संदर्भ में आनुभविक अध्ययन के रूप में किया जाना है।
-अध्ययन के आधार पर स्कूली बच्चों (10वर्ष से 16 वर्ष)के बदलते मानसिक स्वास्थ्य की देखरेख के लिए रूपरेखा तैयार करना है।
-अध्ययन के आधार पर माता-पिता के लिए एक मार्गदर्शिका तैयार करना ताकि आनेवाले समय में वह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बना सके।
-प्रस्तुत शोध के माध्यम से बाल मनोविज्ञान को समझना व बाल विकास में मौजूदा समय में होनेवाले बाधाएँ दूर करना तार्किक अभिप्राय है अध्ययन का।
-इस अध्ययन के आधार पर माता-पिता और बच्चों के बीच उत्पन्न सांवेगिक दूरियाँ कम करने और उनका मनोवैज्ञानिक निवारण उपाय भी ढूंढना है।
Objective of the study
अध्ययन की वस्तुनिष्ठता।
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-इस अध्ययन का पहला उदेश्य है पटना के सरकारी विद्यालय में पढने वाले बच्चों जो कि उच्च शैक्षणिक उपलब्धि वाले बच्चे हैं उनका मानसिक स्वास्थ्य ज्यादा प्रभावित हुआ है कि निम्न शैक्षणिक उपलब्धि वाले बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है यह देखना है।
-इसका दुसरा उदेश्य है कि पटना के सरकारी विद्यालय में पढने वाले वैसे स्कूली बच्चे जो स्वतंत्र है या कही रहकर पढ रहे है जैसे सरकारी आवासित बच्चे उनका क्या मानसिक स्वास्थ्य पर असर है तथा वैसे बच्चे जो इस वैश्विक महामारी में अपने-अपने माता-पिता के बीच रहकर पढाई किये उनका मानसिक स्वास्थ्य की क्या स्थिति है पता लगाना है।
-तीसरी वस्तुनिष्ठ उदेश्य है कि वैसे बच्चे जो उच्च स्तर पर अपना पढाई जिम्मेदारी पूर्वक कर रहे हैं। उनका मानसिक स्वास्थ्य कैसा है। कोरोना काल में तथा जो बच्चे जिम्मेदारी से वंचित होकर अध्ययन कर रहे है उनका मानसिक स्वास्थ्य कितना गिरा है इस बात की भी जानकारी जुटानी है।
-चौथी वस्तुनिष्ठता इस शोध की यह है कि वैसे बच्चे जो ज्यादा भावुक है तथा वैसे बच्चे जो कम भावुक है उनका मानसिक स्वास्थ्य कैसा है। इन दोनो का तुलनात्मक अध्ययन करना है।
-इस शोध का पांचवां उदेश्य है कि जिन बच्चों में उच्च आत्म-संप्रत्य (high self concept) है तथा जिनमें निम्न आत्म संप्रत्यय (low self concepts)है उनके मानसिक स्वास्थ्य में क्या बदलाव आयें हैं मुझे यह देखना है।
-इस शोध का छठा उदेश्य यह है कि उच्च आय वर्ग(high economic status) वाले बच्चे तथा निम्न आय वर्ग (low economic status)वाले बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर क्या स्थिति है। इसकी समीक्षा करनी है।
Methodology:-sample and sampling technique
( प्रतिदर्शन तकनीक और प्रतिदर्श इस प्रकार होगें कार्यप्रणाली अंतगर्त।)
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-इस आनुभविक मनोवैज्ञानिक शोध में पटना जिला मूल रूप से शहरी क्षेत्रों में बिहार सरकार द्वारा संचालित राज्यकीय विधालयों में पढने वाले करीब180 बच्चे लिए जायेगें।इनकी उम्र 10वर्ष से 16 वर्ष होगी। प्रतिदर्श का चयन randomly होगा। बच्चे पटना के होगें यानि किराये पर रहने वाले बच्चे भी शामिल होगें।ये यहाँ के अलग-अलग मुहल्ले के होगें।इनका समुदाय
,लिंग विभिन्नता, जाति व प्रक्षेत्र इत्यादि भी अलग-अलग ही होगा
सब्जेक्ट को 12 समूहों में बांटा जा सकेगा।
-(1) उच्च शैक्षिक उपलब्धि वाले समूह के बच्चे की संख्या कुल 15 होगी जिसपर तनाव मापनी स्केल (Acute stress checklist for children/ASCC)का उपयोग होगा।
-(2)निम्न शैक्षिक उपलब्धि वाले बच्चे की संख्या 15 होगी जिसपर ASCC का उपयोग किया जायेगा।
-(3) स्वतंत्र रूप से पढाई कर रहे बच्चों की संख्या 15 होगी जिसपर इस तनाव चैकलिस्ट उपयोग होगें।
-(4)जो माता-पिता के सान्निध्य में पढ रहे उन 15 पर ये चैकलिस्ट उपयोग होगा।
-(5)जो बच्चे उच्च स्तर पर अपना पढाई जिम्मेदारी से कर रहे हैं वैसे 15 की संख्या में रखे जायेगे।जिनपर भी यह चैकलिस्ट उपयोग होना है।
-(6)जिम्मेदारी से वंचित बच्चों की संख्या 15 होगी ।जिसपर इस चैकलिस्ट का उपयोग किया जायेगा।
-(7) ज्यादा भावुक बच्चों की संख्या 15 होगी जिसपर इस चैकलिस्ट का प्रयोग किया जायेगा।
-(8)कम भावुक बच्चों की संख्या 15 होगी ।जिसपर इस चैकलिस्ट का प्रयोग होगा।
-(9)उच्च आत्म संप्रत्यय वाले बच्चों की संख्या 15 होगी जिसपर इस चैकलिस्ट का उपयोग होगा।
-(10)जिन बच्चों का निम्न आत्म संप्रत्यय होगा उनकी संख्या भी 15 ही रहेगी। जिसपर इस चैकलिस्ट उपयोग होगा।
-(11)उच्च आय वर्ग वाले बच्चों कि संख्या 15 होगी ।जिसपर इस चैकलिस्ट उपयोग होगें।
-(12)निम्न आय वर्ग वाले बच्चों की संख्या 15 होगी ।जिसपर इस चैकलिस्ट उपयोग होगा।
Inclusion/exclusion criteria (शोध समावेश/बहिष्करण)-इस शोध में
ऐसे प्रतिदर्श जो इस शोध के लिए उपयुक्त या डाटा के लिए उपयुक्त नही है। अथवा इस शोध उपकरण के आधार पर फिट नही है उसको बाहर ही रखा जाना है।
-इस शोध पटना में रह रहे बंगाल व विदेशी मूल के बच्चों को नही रखा जायेगा।
-शोध में पुरानी व नूतन राजधानी में पढने वाले ही शामिल हैं।
Research tools
शोध उपकरण परिचय ।
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-(A)एक्यूट स्ट्रैश चैकलिस्ट फौर चिल्ड्रेन्स (Acute stress checklist for children)/ (ASCC) के माध्यम से संक्षिप्त रूप में बच्चों के तीव्र तनाव का पता लगाया जा सकता है। इसका उपयोग 17 साल तक के बच्चों तक हो सकता है। इसमें 29 एकांश है। जो अंग्रेजी में है। सभी एकांश को 5-10 मिनट में इसके जवाब दिये जा सकते हैं। इसके अधिकांशत items 3 प्वाइंट ऑफ़ लिकर्ट स्केल है। (never/,not at all,sometimes, some what ,often,very much)
DSM-4 के हिसाब से यह स्केल सफल रहा है। यह चैकलिस्ट Nancy kassam Adam द्वारा निर्मित है। यह center for injury research hospital, Philadelphia द्वारा विकसित किया गया है।
-(B)mukherjee 's sentence completion scale का उपयोग शैक्षणिक उपलब्धि उच्च/निम्न का स्तर जानने हेतु प्रयोग होगा।
-(C)mohsin's self concept scale आत्म संप्रत्यय उच्च या निम्न का स्तर जानने हेतु उपयोग किया जायेगा।
-(D)singh and Sinha 's Differential personality scale का उपयोग उच्च स्तर व निम्न स्तर पर जिम्मेदारी निभाने, कम भावुक तथा भावुकता स्तर को जानने तथा स्वतंत्रता आदि का पता लगाने के लिए करेंगे।
-(E)Kulshrestha socio economic status द्वारा निम्न व उच्च आय वर्ग का पता लगाने हेतु उपयोग होगा।
References
संदर्भ ।
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-psychiatric research 2020/293/113429/online journal www.Elsevier.com/locate/psychres
-NIMHANS,Benguluru/official website
-UNICEF,India/official website
-National health services/Official website
-American psychological Association/website official
-M.(2007)Health locus of control and depressive symptoms among Adolescents in Alexandra, Egypt/journal
-ICMR/2017/websites official
-WHO/Website official
-Ministry of education, Government of India/official website
-UGC/Official websites
-NIOS/Official website
-psychiatric times/new findings October 8/2020 Article of Karen Dineen Wagner
-introduction review literature/Duan ,shao X ,Way y ,et all/an investigation of mental health status of children and adolescent in China during the out break of covid -19 J-affect disorders, 2020/275/page 112-118
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