जानें ओ.सी.पी.डी मानसिक विकार के बारे में ।

मि.परफेक्टनिस धौंस की आङ में बीमारी तो नहीं ।
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तेतालिस वर्षीय अशोक (परिवर्तित नाम)एक निजी कंपनी में तैनात हैं। बिहार में लौकडाउन के बाद अब यहाँ सभी सरकारी और प्राइवेट दफ्तरों को खोल दिया गया है। वर्क फ्रौम होम के बाद कर्मचारियों को अपने आप को ज्यादा से ज्यादा उपयोगी साबित करना है। अशोक अपने ऑफिस में सजग होकर काम करते रहे हैं। उनके बौस को उनका काम तो पसंद है पर वहाँ काम करने वाले अन्य स्टाफ एक दहशत महसूस कर काम करते हैं। अनलौक के बाद से उनके ऑफिस का नजारा बदला-बदला सा रह रहा है। हर दिन कंपनी के सीनीयर अपने आदेश को उसी दिन पूरा करना चाह रहें।बौस हर कार्य को सलीके से करवाना चाहते है। हर दिन नये  तरीके से काम को अंजाम देना अशोक करते रहें हैं पर बीच-बीच में बौस द्वारा थोड़ी सी भी गलती को लेकर उनका लंबा प्रवचन किसी को रास नही आता।अनेक बार अशोक के मन में नौकरी छोड़ दुसरी जगह ज्वाइन करने की बात आती रही है ।वह हमेशा बौस के रवैये में बदलाव आने की उम्मीद से वहाँ टिके हुए हैं। वैश्विक महामारी के पहले कितने लोग कार्यालय और बौस दोनों को छोङ चुके हैं। बौस को अपने काम इतने परफेक्ट चाहिए होते थे की उनके आगे काबिल लोग ठहर नही पाते।अशोक हमेशा समझते रहे हैं की उनके बौस को काम पसंद है। कर्मचारी के भावनाएं कभी भी उनके प्रोजेक्ट में रोङा नही बना।औफिस के मेहनतकश व कार्य के प्रति ईमानदार कर्मचारी के रूप में अशोक सबसे पुराने स्टाफ माने जाते हैं। ऐसे अनेकों मौके अशोक के सामने आये जहाँ बौस ने उनकी भावनाओं को कुरेदा ही नही बल्कि बौस के जिद्द पर वह घुट-घुट कर कार्य करते रहें ।इस कंपनी को इतने अच्छे प्रोजेक्ट कैसे मिल रहें हैं जबकि इनके कर्मचारी इनका साथ बीच में ही छोङ चले जाते हैं। यही बाते अशोक के मन में चल रहीं हैं। धीरे-धीरे वह अपनी चेतना में जोर दे रहें हैं। उनका बौस अपने कर्मचारी के प्रति कार्य करवाने और कार्य की गुणवत्ता के लिए ही अडिग और जिद्द रखते हैं। वहीं जब उनको प्रोजेक्ट और अन्य स्थापित कार्य करने होते हैं तो उनकी दरिया दिली बाहरी लोगों के समक्ष उभर कर आती हैं। ऐसे हालत में वह काफी उन्मुख होकर संवाद स्थापित करते हैं। कार्य में नैतिक मूल्यों का हवाला देकर और अपनी दक्षता का परिचय देकर वह तुरंत लोगों का दिल जीत लेते हैं। अशोक के मन में लगातार ये सारे सवाल कौंध रहे हैं।
दरअसल अशोक के बौस ओ.सी.पी.डी(औबसेसिव कंपलसीव पर्सनैलिटी डिसऑर्डर) के शिकार हैं।
हर काम में परफेक्शन की चाहत।
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इस समस्या से पीड़ित परिस्थितियों को दरकिनार कर अपने दमित इच्छाओं की पूर्ति चाहते हैं ।ये असंतुष्ट हो सकती हैं। कभी-कभी अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति के लिए व्यक्ति अक्रामक रूख रखता है। इनका व्यवहार मिलनसार तो हो सकता है पर हर बार ये अपनी शर्तों के साथ बात रखते हैं। जिद्द भरा स्वभाव नकारात्मक प्रभाव देता है। कुछ केसेज में व्यक्ति एकदम मक्खन मार्फीक व्यवहार करता है। हर व्यक्ति को अधिक महत्व देकर अपना कार्य सिद्ध करवाना चाहता है।
इंमोशनल ब्लैकमेल नियति।
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इस तरह की विकृति के साथ जीने वाला व्यक्ति अपने और पराये दोनो के लिए सिरदर्द बने होते हैं। समाज में इनका खुल कर विरोध तो नही होता परंतु पीठ पीछे इनकी बुराई होती रहती है।ऐसे लोग
अपने द्वारा बनाये गये  नियमों की अवहेलना नहीं चाहते ।ऐसे क ई अवसर आते हैं जब यह दुसरे को दुःखी कर अपने थोथले सिद्धांत पर चलने के लिए विवश कर देते हैं।
व्यस्तता का दिखातें हैं धौंस।
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ओ.सी.पी.डी के शिकार लोग प्राय:खुद को व्यस्त दिखाना चाहते हैं ।अक्सर परिवार, दोस्त और समाज में कार्य की अधिकता और समय कम होने की दुहाई इनके द्वारा दिया जाता है। कार्य करते हुए यह कभी भी लचीले रूख का सहारा नही लेते।नैतिक रूप से भी वह इसे सही नही मानते।हर समय वह अपने द्वारा बनाये रूल्स को सही मानकर लोगों को इसपर अमल करने की सीख देते हैं।
संवाद की होती है महत्वपूर्ण भूमिका ।
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अगर आपका बौस भी धौंस जमाकर अपना कार्य निकलवा रहें हैं तो ऐसे हालत में उनसे उपयुक्त संवाद स्थापित करना श्रेयस्कर हो सकता है। बातचीत से उन्हें वास्तविक परिस्थितियों से अवगत कराया जा सकता है।
-इस तरह की समस्या से पीड़ित व्यक्ति की बातों को हल्के में नही लेना चाहिए। आप अगर उनकी बातों को काटने के बजाए अन्य विकल्प पर बात करें तो बात बनने लगती है।
-लेखक डॉ॰ मनोज कुमार, सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक चिकित्सक हैं।

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