महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य पर एक पहल।

सिसकते दास्तान को मिल रहा नया आयाम।
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सदियों से महिलाओं को एक वस्तु समझने वाली पुरूषवादी सोच ने अबतक महिलाओं की  एक कमजोर छवि प्रस्तुत की।हजारो सालों से चले आ रहे प्रथा,रीती-रीवाजों व संस्कृतियों के वहन का दायित्व इनके कंधे पर दे दिया गया था।
बच्चों को पालने,पति के नखरे उठाने,शादी के बाद मिली नयी जिम्मेवारीयों का मामला हो या
घर चलाने की बात हो ,नौकरी मे मिले जिम्मेदारी का अहसास व नैतिक मूल्यों का निर्वाह बदलते समय में इनके व्यक्तित्व को निखारने का काम कर रहा।
बदल रही महिलाओं की मानसिकता ।
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दरासल सैकड़ों सालो से महिलाओं के अचेतन में यह बात डाली गयी की उनकी निर्बलता व असहायता ही उनकी पहचान है। वो उस काम को कदापि नही कर सकती जिन कामो पर पुरूषों का अधिपत्य रहा है। इनके अचेतन में यह हमेशा कशमकश रहता रहा हैं की जिस समाज में महिलाओं की शिक्षा व उनके जन्म से जुड़े अनेकानेक भ्रातियां फैले हो।जहां बङे व्यापक रुप में व पूरे साज-सज्जा के साथ समाजिक-सांस्कूतिक अभ्यास करा-करा करके अनुभवों को  इनके दामन में जोङा जा चुका था।
इस घूंट भरे कसावटपन ने उनमे चुप्पी व सबकुछ होता हैं जैसे  मौन धारणा व बर्दाश्त करने के स्त्रीतत्व के गुण को नियति बनाकर इनके व्यवहार में शामिल करा  दी गयी।
चाह कर भी महिलाएं अपने खिलाफ होनेवाले अन्याय को पीती रही।सब्जबाग दिखाकर व उनकी निर्बलता का झांसा देकर पुरूषवादी समाज एक समय से अबतक उनको उपभोग करता रहा।
कुछ मामले में महिलाओं ने आवाज बुलंद करनी भी चाही पर पुरूषवादी चेतना ने सदियो से कमजोर मानी जानी वाली नारी की जागूत चेतना को झकझोर दिया और मामला जहाँ का तहां हरबार रह गया।
बदलते दौर में मी टू अभियान महिलाओं में उनके अचेतन की छटपाहट को समझ रहा।उनके हौसले को एक राह दिखा रहा ।उनमे एक मंच पर लाकर बिठा दिया है।
जहाँ वह अपने साथ हो चुके वाक्यां को शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त कर पा रहीं।
इसके पीछे मूल वजह  यह हैं कि हर स्त्री में पुरूषों जैसे  गुण भी होते हैं जिन्हें एनिमा कहा जाता है। स्त्री की यह विशेषता उसे पुरुषों जैसे सारे कामों को करने की छूट देता है। जिन महिलाओं में शिक्षा व ग्लोबलाइजेशन के मार्फत यह स्त्रीत्व गुण पुरजोर होता हैं वह मी टू जैसे अभियान में अपनी बात को रख रही।
उदेश्य साफ-सुथरा
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मी टू अभियान से कामकाजी पुरूषों को डरने की जरूरत नही क्योंकि उनमें भी एनीमस जैसे पौरूषत्व गुण होते हैं ।फर्क सिर्फ इतना हैं की पुरूष इन गुणों का दुरूपयोग सदियों से करता रहा है। महिलाओं की चेतना अब आंदोलित हुयी।
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डॉ॰ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक, पटना
मो.9835498113

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