उलझते किशोर बिगङते रिश्ते।
वैश्विक बंदी के उपरांत किशोरों से अपेक्षाओं के बोझ कम करने की दरकार ।
------------------------------
डॉ॰ मनोज कुमार
-------------------------------------
उङते आसमानों में बाहे फैला कर जीने की बातें करना।मीठे सपनॊं के आगोश में समाये रहना।पल भर में दुनिया को मुट्ठी में करने की बातें युवाओं के मुख से सुनना।हर किसी को अपने बालपन के अङियलपन व किशोरावस्था की दहलीज की यादें दिलाता है।ये सब इस वैश्विक महामारी से पहले समान्य माना जाता रहा है। महामारी से बन रही परिस्थितियाँ किशोरों के अख्खङपन को कम कर रहा है। जज्बात से भरे किशोरों द्वारा अब अपने उम्र से ज्यादा कशमकश वर्तमान महौल में देखा-सुना जा रहा। कोरोना से उपजे सार्वभौमिक हालात 14 साल की उम्र में ही किशोरों के उन विचारों को परिपक्व करा दिया है जहाँ वह अपने भविष्य के सपने बुनने के लिए जाने जाते रहे हैं। जैसे-जैसे सूबे में महामारी से निपटने और वैक्सीन के माध्यम से इंफेक्शन को रोकने की तैयारी हो रही है वैसे ही किशोरों के व्यवहार में तलखी देखी जा रही।पाढ्यक्रम को आधा करने और सहपाठियों से अधिक समय तक दूर रहने से उनमें अनेकों प्रकार के विषाद पनपते हुए देखा जा रहा।सिलेबस के छंटने और अन्य कारणों से हो रहे आनलाइन शिक्षण को वह पहले अस्वीकार्य करते रहे है अब उनका आक्रोश भी मुखर होने लगा है।14 वर्ष से 17 साल के वैसे टीनेजर्स में गुस्सा अपने माता-पिता पर उतारते देखा जा रहा जो उनकी क्षमता से अधिक कुछ नया करने के लिए नसीहतें दे रहें।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी वैश्विक महामारी के दौरान व उसके बाद युवाओं के बदलते मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीरतापूर्वक विचार करने और लोगों को इसके प्रति जागरूक होने का आह्वान किया है।
पटना के युवाओं का बदल रहा मानसिक मिजाज।
-----------------------------------
राज्य की राजधानी होने के कारण पटना में युवाओं की संख्या प्रतियोगिता और एजुकेशन को लेकर ज्यादा रहा है।रूम-मेटस से अनबन,साधारण बात पर झगङा और मामूली विवाद पर तीखें नोक-झोक पटना में बढ रहा।वास्तव में अब यहाँ के युवाओं की भी मानसिक स्वास्थ्य की दुनिया बदल रही।सोशल मीडीया पर भी लङाई-झगङे पोस्ट किये जा रहे।
बदलाव एक अबूझ पहेली।
----------------------------------
इस साल ऐसे केसेज आयें ।जो अब स्कूल को पास कर बारहवीं में एडमिशन ले रहे थे।राजधानी होने की वजह से दूर-दराज के युवा यहाँ विभिन्न संकाय में पढ रहें। लौकडाउन के बाद अच्छे खासे गैप और नये जगह में नये लोगों से घुलने की जदोजेहद इनके जिंदगी में तनाव का विष घोल रहा।कुछ मामलों में देखा जा रहा की घर छोङ यहाँ रहनेवालो में भावनात्मक अभिव्यक्ति कि कमी हो रही है जिससे उनमें अकेलापन और सोशल साइट पर ज्यादा समय बिताते पाया जा रहा है।
युवाओं के लिए शारीरिक और मानसिक परिवर्तन एक पहेली।
------------------------------------
पटना के सबसे महंगे संस्थानों में पढनेवाले आर्थिक-समाजिक रूप से परिपूर्ण युवाओं से लेकर गरीब ,बेसहारा,अनाथ बेबस और लाचार युवाओं के आलावे अपराधिक गतिविधियों में शामिल युवा भी कानूनी शिंकजे में फंस रहे है या छिटपुट हिंसा कर सुर्खियां बटोरना चाह रहें।सभी केसेज में यह समानता दिख रही की सभी अपने-अपने शारिरिक और मानसिक परिवर्तनों को नही समझते।लङका हो या लङकियां अपने भीतर आये बदलाव से सहमें पायें जा रहें। उलूल-जलूल हरकतें कर अपने शरीर के बदलाव का पता लगाते हैं। छुप-छुपकर अपनी मानसिक समस्याएं व कुंठा- निराशा को सोशल साइटस पर शेयर करते हैं।
वर्चुअल दुनिया युवाओं से छीन रहा उनका अल्लहङपन।
----------------------------------
दो तरह के युवाओं की टोली देखने को मिल रही।गैजेटस का इस्तेमाल और इन्टरनेट की दुनिया में रहने वाले आगे बढते मिले।अपने तनाव व अकेलापन से निजात पाने के लिए वर्चुअल रहनेवाले दुसरे तरह के युवाओं में मानसिक समस्याएं घेर रही।डिप्रेशन ,ओसीडी और न जाने कितनी मानसिक बीमारी की आगोश में जीते हुए पाया जा रहा।
अब 14 की उम्र में मानसिक रोगी बन रहे युवा।
-----------------------------
ईलाज के लिए आनेवाले युवाओं में 14 साल से 29 आयुवर्ग के युवक-युवतिओ में अवसाद पीङीत के केसेज मिल रहें।डिप्रेशन में जीवन की इहलीला समाप्त करना और विभिन्न प्रकार के नशे का सेवन इनके मानसिक अस्वस्थता को धोतक माना जा रहा है।
माता- पिता व समाज से संवादहीनता।
----------------------------------
युवाओं में कम उम्र में मानसिक परिपक्वता उनमें विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित कर रहा।शारीरिक संबंधो में इजाफा होना या इसके प्रति उतावलपन देखा गया भले ही वो प्रेम के मूल्य को न समझे।माता-पिता से बातचीत न होना और अपनी बात मनवाने के लिए अङना भी युवाओं के खराब मानसिकता का परिचायक दिखता रहा।कम उम्र में बाईक चलाना और फास्ट-फूड खाकर दिन काटना युवाओं के फेहरिस्त में शामिल हो रहा।
मनोसामाजिक सपोर्ट की दरकार।
----------------------------------
युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को समझना अब जरूरी हो गया।समाज के लोगों की जिम्मेदारी अब ज्यादा बङी हो गयी ।उन्हे भी इनको समझना होगा।सरकारी स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ का दायरा बढाकर युवाओं के सपने टूटने से बचाने का बीङा उठाना एक सशक्त कदम होगा ।
(लेखक डॉ॰ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक की कलम से सांभार)
Comments
Post a Comment